kuldeepanchal9
सागर व मन
सागर व मन समरूप ही है
सागर व मन की गहराई को नापा नहीं जा सकता
सागर में यदाकदा तूफान आते रहते हैं
तूफान के बाद सागर कुछ शांत हो जाता है
मन में तूफान सदैव स्थिर रहते हैं इसलिये मन का दूसरा नाम अशांत भी है
सम्पूर्ण सागर को बांधना मुश्किल है उसी प्रकार मन को बांधना भी असंभव है
सागर में अनंत रत्नों का भंडार है
लेकिन मन में केवल एक ही रत्न है जिसको ब्रह्म कहा जाता है
मानव मन उस ब्रह्म को छोड़कर सागर के रत्नों में रहता है
मन को शांत करने का एक ही उपाय है भावातीत ध्यान
*** डॉ पाँचाल