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स्वयं से प्रेम कार्य से प्रेम या संस्था से प्रेम

मनुष्य के जीवन में प्रेम अति आवश्यक है सभी से प्रेम किया जाता है परमेश्वर से प्रेम करोगे तो आत्मा का परमात्मा से मिलन होगा | परिवार के प्रति प्रेम में मनुष्य को उत्तरदायी होना पड़ता है मित्रों व् रिश्तेदारों से प्रेम करने पर सहयोग व् आत्मीय की भावना उत्पन्न होती है समाज से प्रेम करने पर देश भक्ति की भावना उत्पन्न होती है कर्म क्षेत्र में केवल कार्य से प्रेम करना चाहिए न कि संस्था से प्रेम |

क्यूंकि कार्य से प्रेम करोगे तो स्वयं के व्यक्तित्व में निखार आएगा लेकिन संस्था से प्रेम करोगे तो वो

आपसे प्रेम नहीं करेगी पता नहीं किस दिन संस्था आपसे प्रेम करना बंद कर दे |

*** डॉ पांचाल


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