kuldeepanchal9
वाणी की महत्ता
परमेश्वर ने दो कर कमल सद्कर्म करने के लिए, दो चरण अग्नि पथ पर चलने के लिए. दो नेत्र अच्छा व् बुरा देखने के लिए, दो कर्ण अच्छा व् बुरा सुनने के लिए दिए हैं तथा एक वाणी दी है जो मुखाविंद में बंद रहती है लेकिन उस पर मानव का नियंत्रण नहीं है उस वाणी से मनुष्य कटु व् मीठे शब्दों की वर्षा करके किसी को शत्रु व् किसी को मित्र बनाता है यह हम पर निर्भर करता है कि हम शत्रु बनाये या मित्र
*** डॉ पांचाल