kuldeepanchal9
आपत्ति व् विपत्ति
दोनों शब्दों का अर्थ समान हो सकता है लेकिन कुछ भिन्न भी है | मनुष्यों के कर्मो के आधार पर भाग्य बनता है हमारे कर्मो से कभी कभी परमेश्वर को आपत्ति होती है यही आपत्ति विपत्ति का रूप धारण करती हैं
अत: कर्म करने से पूर्ण उस पर ध्यान देना मनुष्य का कर्तव्य है |
