kuldeepanchal9
अजेयता
मेरे अच्छे कर्म करने के पश्चात सबका भला करने के बाद
मन में छल कपट न होने के बाद भी दूसरों की घृणा के मध्य मैंने पाया कि मेरे मन मस्तिष्क में एक अजेय प्रेम था।
आँसुओं के बीच, मैंने पाया कि मेरे मन मस्तिष्क में एक अजेय मुस्कान थी।
अराजकता के बीच, मैंने पाया कि मेरे मन में एक अजेय शांत अनुभव था।
मुझे एहसास हुआ, यह सब के माध्यम से, कि ...
सर्दियों के बीच में, मैंने पाया कि मेरे अन्दर एक अजेय गर्मी थी।
और यही मुझे खुश करता है इसके लिए यह कहता हूँ कि दुनिया चाहे मेरे विरुद्ध कितना भी मुझे डुबोने का प्रयास करे
मेरे अंदर कुछ दृढ़ संकल्प होता है - कुछ बेहतर होता है,
केवल व केवल
परमेश्वर की कृपा है
जिसके कारण दूसरे अपने कार्य में असफल रहते हैं
*** डॉ पाँचाल